लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2081
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय १

द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगों का वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजन की महिमा

यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्यितो
यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापकण्भिधौ।
प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हदि सदा पश्यन्ति यं योगिन-
स्तर. शैलसुतान्वितार्द्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे।।१।।

जो निर्विकार होते हुए भी अपनी मायासे ही विराट् विश्वका आकार धारण कर लेते है स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष) जिनके कृपा-कटाक्षके ही वैभव बताये जाते हैं तथा योगीजन जिन्हें सदा अपने हृदयके भीतर अद्वितीय आत्मज्ञानानन्द- स्वरूपमें ही देखते है उन तेजोमय भगवान् शंकरको, जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वतीसे सुशोभित है निरन्तर मेरा नमस्कार है।।१।।

कृपाललितवीक्षणं स्मितमनोज्ञवक्ताम्बुजं
शशांककलयोज्ज्वलं शमितघोरतापत्रयम्।
करोतु किमपि स्फुरत्परमसौख्यसच्चितुपु-
र्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम्।।२।।

जिसकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है, जिसका मुखारविन्द मन्द मुसकानकी छटासे अत्यन्त मनोहर दिखायी देता है? जो चन्द्रमाकी कलासे परम उच्चल है जो आध्यात्मिक आदि तीनों तापोंको शान्त कर देनेमें समर्थ है जिसका स्वरूप सच्चिन्मय एवं परमानन्दरूपसे प्रकाशित होता है तथा जो गिरिराजनन्दिनी पार्वतीके भुजपाशसे आवेष्टितह्रै वह शिवनामककोई अनिर्वचनीय तेजपुंज सबका मंगल करे।।२।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book